मसूर की दाल

मसूर का प्रयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है | इससे सभी अच्छी तरह परिचित हैं | समस्त भारत में मुख्यतः शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में, तक उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्णकटिबन्धीय १८०० मीटर ऊंचाई तक इसकी खेती की जाती है |
यह १५-७५ सेमी ऊँचा,सीधा,मृदु-रोमिल,शाकीय पौधा होता है | इसके पुष्प छोटे,श्वेत,बैंगनी अथवा गुलाबी वर्ण के होते हैं | इसकी फली चिकनी,कृष्ण वर्ण की,६-९ मिलीमीटर लम्बी ,आगरा भाग पर नुकीली तथा हरे रंग की होती है | प्रत्येक फली में २,गोल,चिकने,४ मिमी व्यास के,चपटे तथा हलके गुलाबी से रक्ताभ वर्ण के बीज होते हैं | इन बीजों की दाल बनाकर खायी जाती है | इसका पुष्पकाल दिसंबर से जनवरी तथा फलकाल मार्च से अप्रैल तक होता है |
इसके बीज में कैल्शियम,फॉस्फोरस,आयरन,सोडियम,पोटैशियम,मैग्नीशियम,सल्फर,क्लोरीन,आयोडीन,एल्युमीनियम,कॉपर,जिंक,प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट एवं विटामिन D आदि तत्व पाये जाते हैं | मसूर के औषधीय गुण –

१- मसूर की दाल को जलाकर,उसकी भस्म बना लें,इस भस्म को दांतों पर रगड़ने से दाँतो के सभी रोग दूर होते हैं |

२- मसूर के आटे में घी तथा दूध मिलाकर,सात दिन तक चेहरे पर लेप करने से झाइयां खत्म होती हैं |

३- मसूर के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गले की सूजन तथा दर्द में लाभ होता है |

४- मसूर की दाल का सूप बनाकर पीने से आँतों से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |

५- मसूर की भस्म बनाकर,भस्म में भैंस का दूध मिलाकर प्रातः सांय घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है |

६- मसूर दाल के सेवन से रक्त की वृद्धि होती है तथा दौर्बल्य का शमन होता है |

७- मसूर की दाल खाने से पाचनक्रिया ठीक होकर पेट के सारे रोग दूर हो जाते हैं |

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