अशोक

यह भारतीय वनौषधियों में एक दिव्य रत्न है | भारतवर्ष में इसकी कीर्ति का गान बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है | प्राचीनकाल में शोक को दूर करने और प्रसन्नता के लिए अशोक वाटिकाओं एवं उद्यानों का प्रयोग होता था और इसी आश्रय से इसके नाम शोकनाश ,विशोक,अपशोक आदि रखे गए हैं| सनातनी वैदिक लोग तो इस पेड़ को पवित्र एवं आदरणीय मानते ही हैं ,किन्तु बौद्ध भी इसे विशेष आदर की दॄष्टि से देखते हैं क्यूंकि कहा जाता है की भगवानबुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष के नीचे हुआ था | अशोक के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र बाग़ बगीचों में तथा सड़कों के किनारे सुंदरता के लिए लगाए जाते हैं | भारत के हिमालयी क्षेत्रों तथा पश्चिमी प्रायद्वीप में ७५० मीटर की ऊंचाई पर मुख्यतः पूर्वी बंगाल, बिहार,उत्तराखंड,कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में साधारणतया नहरों के किनारे व सदाहरित वनों में पाया जाता है| मुख्यतया अशोक की दो प्रजातियां होती हैं ,जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है |
आज हम आपको अशोक के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे –

१- श्वास – ६५ मिलीग्राम अशोक बीज चूर्ण को पान के बीड़े में रखकर खिलने से श्वास रोग में लाभ होता है |

२- रक्तातिसार- अशोक के तीन-चार ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त ) में लाभ होता है |

३- रक्तार्श ( बवासीर )- अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में ले कर दस ग्राम मात्रा को रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें , सुबह पानी छान कर पी लें इसी प्रकार सुबह का भिगोया हुआ शाम को पी लें ,इससे खूनी बवासीर में शीघ्र लाभ मिलता है |
४- अशोक के १-२ ग्राम बीज को पानी में पीस कर दो चम्मच की मात्रा में पीस कर पीने से पथरी के दर्द में आराम मिलता है |

५-प्रदर – अशोक छाल चूर्ण और मिश्री को संभाग खरल कर , तीन ग्राम की मात्रा में लेकर गो-दुग्ध प्रातः -सायं सेवन करने से श्वेत -प्रदर में लाभ होता है |
अशोक के २-३ ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है |

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