न्यायालय में क्या हुआ, उच्य और सर्वोच्य न्यायालय में क्या हुआ, युद्ध में क्या हुआ, इलेक्शन में क्या हुआ इन सबका कोई मूल्य नहीं है, मूल्य है तो सिर्फ इस बात का कि इतिहास में क्या लिखा गया???
और, यदि आप इतिहास उठा कर देखें तो आपको पता चलेगा कि इतिहास ने कभी उसका साथ नहीं दिया जो न्याय प्रिय था, इतिहास ने कभी उसका साथ नहीं दिया जो शांतिप्रिय था, अपितु इतिहास के न्यायालय में सदैव वही विजयी हुआ है जो कूटनीतिज्ञ शक्तिशाली था।
यदि इतिहास न्यायसंगत लोगों का साथ देता तो आज दिल्ली में बाबर रोड है, परन्तु राणा सांगा रोड क्यों नहीं है ??, क्योंकि बाबर आया और उसने राणा सांगा को हरा दिया, भले ही राणा सांगा सही थे, न्यायसंगत थे परन्तु आज इतिहास ने उन्हें भुला दिया है।
दिल्ली की राजधानी रास्ट्रपति भवन नई दिल्ली वैसे तो बाबा लखिशाह बंजारा की भूमि पर बानी पर लखिशाह का नाम नहीं।
हमारे हजारों वर्ष के इतिहास में हम गोर बंजारों ने कभी किसी पर अन्याय नहीं किया, किसी अन्य धर्म को आहत नहीं किया, कभी भी हमने अन्य धर्म के धार्मिक स्थलों को नहीं तोड़ा, आज उसी समाज के धर्मगुरु संत श्री सेवालाल महाराज की गोवा में मंदिर तोड़ी गयी।
हमारा समाज विशाल भारत में बेस हर वर्ग के मानव जाती पशुपक्षी को अन्न धान्य रसद पानी पहुंचाया आज उसी समाज को अन्न धान्य पानी की तकलीफ झेलना पड़ रहा है।
गोर बंजारा समाज हजारो वर्ष पहले विस्व के अनेक हिस्से में घूम घूम कर वयापार किया है इतिहास में जिस भारतवर्ष की सीमाएं अफगानिस्तान / ईरान तक थी आज सिकुड़कर केवल वर्तमान इण्डिया तक रह गयी हैं ,
क्यों आखिर ऐसा क्यों हुआ ??
क्या जरूरत से ज्यादा अहिंसा , सहनशीलता और मानवता दिखाने का क्या यह परिणाम नहीं था ??
हम न्यायसंगत थे, हम शांतिप्रिय थे, हम मानवता में विश्वास करते थे, परन्तु इतिहास ने हमें सजा दी,
सजा इस बात की कि हमने अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया।
यदि मुगलो और विदेशी आक्रांताओं की शक्ति और उस समय भारतवर्ष की शक्ति का अनुपात निकाला जाए तो 1: 1000 का अनुपात भी नहीं था, फिर भी हम पर मुग़ल और विदेशियों ने शासन किया क्योंकि हमारी मानवता शक्ति बंटी हुई थी एकजुट नहीं थी ,और न सिर्फ उन मुस्लिम और अंग्रेज लुटेरों ने शासन किया और जब उनका मन भर गया और वे जाने लगे तो यहां की सत्ता अपने गुलामों को सौंप गए,
और तब भारत में गुलाम वंश का उदय हुआ और आज भी हम गुलाम की जिंदगी जी रहे है ।
दोस्तो जागो गोर बंजारा समाज कहां था और आज कहां है ?
आज हम समाज को जागरूक कर एक जूट करने का प्रयास कर रहे है तो अपने ही लोग समाज को भ्रमित कर समाज हितमे काम करने वालौंको साथ देने की जगह टिक टिपण्णी करते है।
दोस्तों समाज का भला चाहते हो तो समाज हितमे काम करने वालौंपर टिका टिपण्णी की जगह उनका साथ दो साथ ना भी दोतो उनका हौसला बडावो, अन्यथा आप अपना घर संभालो उन्हें आपके उपदेश की कोई जरुरत नहीं है। जुडो और जोड़ो समाज को
आपका और समाज का शुभ चिंतक
रविराज टी राठोड़
संपादक राज-बंजारा, संयोजक गोर बंजारा संघर्ष समिति भारत, अध्यक्ष जान कल्याण सेवा संस्था, अध्यक्ष मजदूर यूनियन,