दोस्तों आज हमारे घुमंतू कबीलों की सोच बस इतनी ही रह गई कि वो किसी बड़ी पार्टी में घुस कर किसी छोटे मोटे पद पर जम कर बैठ जाए ओर कोई भी पार्टी किसी घुमंतू को टिकट तो देती नहीं अगर देती है और वो जीत भी जाए तो वो सदन में घुमंतू कबीलों की बात नहीं कर सकता। आज बहुत राज्यों में कैबिनेट मंत्री भी घुमंतू कबीलों के लोग हैं और पहले भी हो चुके हैं लेकिन वो सदन मे या उनकी पार्टी की मीटिंगों मे कबीलों की हालत सुधारने की बात ही नहीं करते और न अपने दल के मुखीयों की विरोधी सोच की वजह से कर सकते हैं। मेरा कहने का मतलब घुमंतू कबीलों को एक मंच पर आना ही पड़ेगा। आज हमारे लोग बड़े नेताओं से मिलने का समय बड़ी बेसब्री से लेते हैं यदि कल सभी घुमंतू कबीले एक हो जाएं तो ये नेता कबीलों के पीछे आप लोगों से मिलने के लिये घूमेंगे। कुछ लोग अमित साह को घुमंतू कबीलों का रहनुमा कहते हैं दोस्तों ये लोग भरम फैला कर वोट की डुगडुगी बजाते हैं।मै एक बात आप को पूरे यक़ीन के साथ कह सकता हूँ अगर आप घूमतू लोग एक प्लेटफ़ार्म पर इकट्ठा हो जाएँ यह सभी पार्टीयाँ के नेता आप लोगों के पीछे घूमते दिखलादूंगा। पूरे भारत मे घुमंतू कबीलों की हालत बहुत दयनीय है। गुजरात महाराष्ट्र बिहार उड़ीसा बगैरा में हमने कबीलों की समस्या को रूबरू देखा है बहुत बुरी हालत मे वो लोग अपना जीवन बस्तर कर रहे हैं। यहाँ तक कागंरेस की बात तो उसने भी हमेशा कबीले के वोट बटोरने के अलावा इन की दशा सुधारने का अब तक कोई प्रयास नहीं कीया है। धुमंतू कबीलों को वो अपना पक्का खाता बोट बैंक समझती है। हम ने इकट्ठा हो कर उनका यह भ्रम भी तोड़ना है। इस लीए जागो घुमंतू कबीलों के लोगो एक मंच पर आओ और एकता का प्रतीक बनकर अपने अधिकारो के आप रक्षक बनो। जै भारत।
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