(विभिन्न मत)
गौर बंजारा पूरी दुनिया को दो वर्गों में विभक्त करता है। गौर अ{आर–बंजारा) अपने आप को गौर कहता है और दूसरों को कौर कहता है। गौर बंजारा कोई विशेष जाति नहीं, बल्कि एक सप्रदाय है । सम्पूर्ण बंजारा सप्रदाय को भारतवर्ष की चारों दिशाओं में गौर बंजारा प्रांत और व्यवसाय के नाम से अलग–अलग नामों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं । लेकिन उनकी संस्कृति, बोली–चाली, रोटी–बेटी का रिश्ता कायम है । गौर (Jा{आर) शब्द के साथ साथ सामान्यता माटी शब्द को भी जोड़ा जाता है । राजस्थान में माटी शब्द का अर्थ है पुरुष अथवा पति से होता है । गौर शब्द लेकर कई प्रथाएं प्रचलित है । सूर्यवंशी राजा के पुत्र को लेकर विष्णु पुरुष पहले एक चंद्रवंशी और बाद में इद्रवंशी राजा के पास गया साथ मुनि जी भी थे ।
इद्रवंशी और राजाओं ने भी एक–एक पुत्र दे दिया। ऋषि ने तीनों से कहा की आप तीनों कोई ना कोई काम शुरु करो । मुनि जी ने चारों को एक–एच घोड़ा दिया । विष्णु ने जिस पुरुष को भू–लोक में पाताल में लेने के लिए भेजा था, उसकी संतान लबाणा या लबाना/लबाना बंजारा कहलाई । विष्णु संमभूत होने की कारण लबाना यज्ञपोनित धारण करनें लगे । सूर्यवंशी बालक की संतान चौहान और इद्रवंशी बालक की संतान परमार कहलाई ।
इसी प्रकार मध्यप्रदेश में एक कहानी प्रचलित है कि बंजारे उट्ठ’ कुल के राजपूतों की संतान है। राजपूतों का ही नहीं बल्कि पुराणों में वर्णित शुद्र क्षत्रियों का वंश बताया गया है । बंजारा मूल पुरुष अज्ञात कुल नहीं वे विष्णु सम्भूत है दोनों दत्तक पुत्र सूर्यवंशी और चद्रवंश से जोड़ा गया है और तीसरे पुत्र की इद्रवंश से कल्पना की गई है। एक गरीब ब्राह्मण नील काटनी था । दरिद्रता की वजह से अपनी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकता था । राठौड़ पवार पंवार और चौहान कुल का एक–एक व्यक्ति नो नन्दी बारह जांघी जा रहे थे तीनों ही निसन्तान थे । तीनों ने एक दिन माँ काली के मन्दिर में जाकर मनौती मानी की मां हमें पुत्र के रूप में सन्तान दो तो हम बकरे की बली देंगे । कुछ समय के पश्चात् तीनों को पुत्र रत्न प्राप्त हुए । जब लड़के पद्रह वर्ष के हुए तो माँ–बाप मनौती पूरी करने के लिए तीनों लड़कों को चित्तौड़ ले गए लेकिन चित्तौड़ के लोग बकरे की बली को बड़ी नहीं मानते थे वहां के राजपूतों ने तीनों लड़कों प्रदेश जा रहे थे, तो रास्ते में एक किसान ने उनको पेड़ काटने की नौकरी पर रख लिया । पेड़ काटने से तीनों लड़कों के हाथों में छाले पड़ गए । एक राहगीर वहां से गुजर रहा था। उसने लड़कों के हाथों में छाले देखकर कहा कि तुम इतना सा मामूली काम भी नहीं कर सकते तुम तो तीनों गोआर हो, तीनों लड़के इस अपमानजनक सम्बोधन से दुःख हुए, और अपनी अयोग्यता पर शोक मना रहे थे तो श्री गुरु नानक देव जी महाराज किसी यात्रा पर जा रहे थे, लड़कों को चिन्तित देखकर बोले के भाई तुम गोआर नहीं हो (Jा{र्ह) माननीय हो! तब से तीनों गोई कहलाने लगे, उनकी संतान भी गोई के नाम से प्रसिद्ध हुई । आगे चलकर गोर्ह शब्द गोर शब्द व गोआर कहलानें लगी । कुछ लोग भारतीय गोरो का सम्बन्ध मुहम्मद गौरी के साथ जोड़ते हैं। एक कथा और बंजारों को सुग्रीव का वंशज सिद्ध करती है । तीसरा मत कि ये घुमंतू जातियां थी, घुमंतू खानाबदोश जातियां मध्य एशिया में घूमती–घूमती भारत में आई । चौथा मत बंजारा समाज के पूर्वज द्रविड़ थे । पांचवा मत है कि बंजारे जब कहीं टांडा (काफिला) कुछ दिन के लिए निवास करता है, तो अपनी झोपड़ियों की दीवारें पूर्व दिशा की ओर रखते हैं। भोजन प्रीतिभोज या पंचायत या सार्वजनिक समारोहों में गोलाकार बना कर बैठते हैं । सम्भवतह राजपूतों में इसी प्रकार बना कर बैठते हैं । इसी प्रकार विभिन्न मतों के चलते हमें जानकारी नहीं है । लेकिन गोआर भाषा के मुताबिक, जो कि राजस्थानी व गुजराती भाषा का मिश्रण है । इससे यह तथ्य सही लगता है कि हमारा मूल निवास राजस्थान ही है । बंजारा जाति के अधिकतर लोग नमक का व्यापार करते थे, जिसे स्थानीय भाषा में वे लून भी कहते है । लून शब्द से ही कुछ लोग लूनबाना अथा लुबाणा कहलाए| ।
राजस्थान में सूखे की वजह से पानी का अभाव हो गया जिसकी वजह से ये लोग भारत–वर्ष के विभिन्न प्रान्तों में पलायन कर गए । यहां पानी व चारा उपलब्ध था। आज बंजारा जाति भारत व विदेशोंमें निवास कर रही है । भारत में यह लोग राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट, कर्नाटका में बहुतायत संख्या में निवास करते हैं । जिन्हें विभिन्न उपनामों से जाना जाता है जैसे कि बाजीगर, बंजारा, ग्वारिया, बादी, लमानी,लम्बाडी, लुबाना, सिरकीबंद, चारण, राठौड़ । विदेशों में जैसा यूरोपीयन देशों में जिप्सी तथा रोमा आदि नामों से जाना जाता है । अंत में मेरी समस्त गोआर समाज से प्रार्थना है कि सभी समाज सुधारक मंचों से ये आवाज उठाएं की विभिन्न प्रदेशों के विश्वविद्यालयों में बाबा लखी शाह बनजारा पीठ स्थापित की जाए कि विभिन्न तथ्यों पर खोज करके हमारी सही उत्पत्ति व स्थान खोज कर हमारी सही उत्पत्ति व स्थान खोजा जाए तथा समाज के लोगों से प्रार्थाना है कि अपने नाम के पीछे अपनी उपजाति जरूर लगाएं । हमारी प्रमुख उपजातियाँ इस प्रकार हैं । 1. बड़तीया 2. बलजोत 3. धर्मसोत 4. नामसोत 5. मुछाल 6. वजरावत ।
हरिसिंह एस.डी.ओ.
ऐलानाबाद
मो. 09416144608