गोरबोली भाषा एंव सांस्कृतिक सौंदर्य/ सौहार्द- संपन्न लावण्य रूप को विश्व में और उजागर करनेवाला महान साहित्यिक…

Bhimani Putra Mohan Naik

भीमणीपुत्र मा. मोहन नाईक :

प्रसिद्ध साहित्यिक, कवि, कथाकार मानवतावादी विचारों से स्वतंत्रता, न्याय , समता तत्वों को अपनाकर गोर-बंजारा लोकसाहित्य, गौरवपूर्ण इतिहास और संस्कृति पर महाराष्ट्र राज्य के बापू भीमणीपुत्र, मोहन नाईक ने समस्त गोर बंजारा समुदाय के लिए बहुमूल्य साहित्य लिखा है । यह समस्त कोर/गोरबंजारोको दिशादर्शक साबित हो रहा है। उन्होंने गोरबोली भाषा के सौंदर्य संपन्न लावण्य रूप को और गौरवपूर्ण गोर संस्कृति को विश्व में उजागर किया है।
“साहित्यमें बोलीभाषा का कोई स्थान नहीं है इस मत पत्रवाहकों गोरबोली भाषा अभिव्यक्ती एक आवाहन!” इस विषय पर उन्होंने बहुमूल्य संशोधन किया है। कारणवश, वे 5 वे अखिल भारतीय गोर-बंजारा साहित्य संम्मेलन, डोंबीवली, मुंबई के अध्यक्ष रहे है। उन्होंने गोरबोली भाषेको न्याय देनेका बेहद प्रयास किया है। मूल रूप से उनके द्वारा लिखीं गईं “गोरपान” अर्थात मैने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “Bhimniputra’s GORPAN: The Linguistic Beauty In Gorboli Dialect” [A Socio-Cultural Study And Analysis] नामक (ISBN- 978-93-87538-88-7) नामक ग्रंथ मैंने समिक्षा के रूपमें लिखने से बापू की वजह से हमारी वैभव संपन्न सांस्कृतिक धरोहर आज विश्वमें पहुंच गई है । विश्वके गोर-बंजारा, लमान रोमा,जिप्सी बंजारा के गोर-बंजारा साहित्य विश्वमें इस साहित्यकृती का एक नया इतिहास और रिकार्ड बना है। यह किताब विश्व के तेरह online web portals पर उपलब्ध है। अगर इस किताब को पढ़ने की आपकी कामना है, आज उनके जन्मदिन के उपलक्ष में अपेक्षा करता हूँ की इस महान साहित्यकृती को देश के निचे दिये गये लिंक द्वारा घर बैठे आप पा सकते है। (Grab your copy before stock is over)
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यह किताब पढ़ कर हम हमारी सांस्कृतिक धरोहर को अधिक समृद्ध करने में बहुमूल्य योगदान दे सकते है। बापू के साहित्य रचनाओं में गोर-बंजारा समुदाय की तत्कालीन संस्कृति एंव प्रासंगिक इतिहास बोलता है। उन्होंने अपने साहित्य से तांडा प्रेषित जीवन की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का लोकसाहित्य( folk literature) के स्त्रोतों से मार्मिक चित्रण यह socio-linguistic भाषा शास्त्र के रूपमें उन्होंने प्रस्तुत किया है और आज भी कर रहे है। अगर आप समस्त गोर-बंजारा समुदाय के आचार-व्यवहार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा, दुःख-सुख और सूझ-बूझ को जानना चाहते हैं तो भीमणीपुत्र बापू के साहित्य को जरूर पढे। भीमणीपुत्र के महान साहित्यिक कार्य का उचित गौरव हेतु उनका जनमदिन गोरबोली/बंजारा भाषा गौरव दिन के रुप में मनाने की मैंने एक साल पहले अपेक्षा की थी लेकिन इसे हमारे समाज द्वारा उचित प्रोत्साहन नहीं मिल पाया। आप सभी के सहयोग से हम इस मुहिम को सफल बनाना है।
बंजारा समुदाय में बापू का साहित्य यह त्रिकालाबाधित सत्य रहेंगा। हमें वाचन संस्कृति को अधिक दृढ़ करके हमारे स्वाभिमान को अधिक उजागर करना है।
बापू की कोर-गोर समाज में, और हमारी नजरों में हमेशा अलग व सर्वोच्च ओहदा है और रहेंगी।
बापू आप बंजारा साहित्य विश्व में सबसे महान, और मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
बापू आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई ..।।
आपको लंबी उम्र मिले, इस कामना के साथ…।
आपका- डॉ. दिनेश सेवा राठोड
Cell- +91 9404372756
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