गोर बंजारा-गणचिन्हवाद ( टोटेमवाद)

*गोर बंजारा – गणचिह्नवाद (टोटेमवाद)*

      *और  भीमणीपुत्र मोहन नाईक*

    –   प्रा.दिनेश एस.राठोड

         (द्वारा संपादित)

  कल बापू की टोटमके संदर्भमें संशोधित लेख पढकर गोरगण संस्कृति  का नया आयाम सामेने आया। और सिख मिली। मैनै थोडा विस्तारसे इस महत्वपूर्ण बात पर चिंतन कर निचे संदर्भों की मदत से लिखी है। 

 भारत में अनेक टोटेमी जातियाँ हैं। संथाल जाति में सौ से अधिक ऐसे गण है जिनके नाम पशु, पक्षी और  पर रखे जाते हैं। इसी प्रकार दक्षिण बिहार की ही जाति में लगभग पचास ऐसे टोटेमी गण है। राजस्थान और खानदेश के भील 24 गणों में विभाजित हैं, जिनमें से कई के नाम पशुपक्षियों तथा वृक्षों पर आधारित लगते है। महाराष्ट्र तथा में  भारत मैं बिखरे  कतकरी, बंजारी गोरगण मध्यप्रदेश के गोंड और राजस्थान के मीना, मिलाला आदि जातियों में भी गणों के नाम उनके प्रदेश में पाए जानेवाले पशुपक्षियों पर रखे जाते हैं। इन सभी जातियों में टोटेमी गण नाम के साथ साथ टोटेमवाद के कई लक्षण भी वर्तमान है जैसे टोटैम को अलौकिकडा पितृ मानना, टोटेम के शरीर की वस्तुओं (जैसे पंख, खाल, पत्तियाँ या लकड़ी) और टोटेम के चित्र तथा संकेतों को भी पवित्र मानकर उनको पूजा जाता है और टोटेम को नष्ट करने पर कठोर प्रतिबंध होता है।

   इनके साथ ही भारत में ऐसी अनेक जातियाँ हैं जो टोटेम पर अपने गण अथवा समुदाय का केवल नाम रखती है। बहुत सी ऐसी हैं जो केवल टोटेम को पूजती भर हैं। मजूमदार ने बंगाल में रहनेवाली ऐसी अनेक जातियाँ (बागड़ी, महिष्द और मोरा) का उल्लेख किया है। Totemism in Gor community is a belief associated with animistic concept For them, totem is usually an animal or other natural figure that spiritually represents a group of related people such as a clan not any caste or religion.

  However, the traditional Gor people of those cultures have words for their guardian spirits in their own dialectial languages, and call them symbols, or “totems”

  इस संदर्भमें महाराष्ट्र,भारत के  गोर गण की संस्कृति,भाषा के समाजशास्त्री, तथा ख्यातनाम साहित्यिक भीमणीपूत्र, मोहणजी नाईक अपणे संशोधनोंसे यह सिद्ध किया है अपने *वाते मुंगा मोलारी*My swan song यह सदर से गोर  गणों मै जागृती का काम किया है।  और करते रहे है। अपनी गोर बोलीमें वे कहते है।

 *गोर संस्कृती माइर ‘देवकवाद’- टोटम( कूल चिन्ह प्रतिक)इ गोरुर एक ऐतिहासिक आदिम ओळख*

” आदिवासी समाजेम कूळेर उत्पत्ती ‘देवक’ कतो पशु, पक्षी, झाड येनेती येनेती वचं हानू एक समज छ.देवकेनं आदिम लोक पवित्र मानचं.देवकेन मारणो इ पाप समजचं…देवक कुळेर रक्षण करचं हानू विश्वास रचं ये विश्वास व्यवस्थानं समाज शास्त्रज्ञ *देवकवाद- टोटम* कचं..!

        गोरगणे माइर भुकीया लोक ‘ सेंबळेर’ झाडेन काटेनी.मुड घराणेर लोक ‘मारुक’ ये झाडेनं आपणे घराणेर कुल पुरुष मानचं.पोवार ‘पंबोड्यार’ भाजी खायेनी.रामावतेवाळेनं ‘मोर’ चालेनी.लावडीया ये ‘लावी’ मारन खायेनी.बाल्णोतेवाळ ‘सुरेर’ बोटी खायेनी.हारावतेवाळ ‘हारवडेर’ बोटी खायेनी अर्थात ‘देवकवाद’ आवजगो..!

        गोत्र संकल्पना इ सिंधू संस्कृतीम रुढ कोनी रं; तो सिंधू संस्कृतीमं *कुलचिन्ह- देवक* प्रथा रुढ रं.इ अभ्यासकेरे संशोधने माइती सिद्ध वेगो छ.गोर संस्कृती माइरो कुल चिन्हेरो इतिहास आज भी गोर लोकसाहितेमं वाचेन मळचं.कुल चिन्ह इ संकल्पना आदिम छ.गोत्र संकल्पना इ घण वरल छ.इज हाम भुलगे

  येरवासू गोर धाटी माइर कुल चिन्हेरो जो विकृत रुप आज देखेन मळरो छ, जसो मुड-मुडे, वडतीया- वडते,बाल्णोत-आडे,अणावत-अणे ये प्रथानं आवरणो इ गरजेर छ.

         *वडतीयारो इ अस्सल आदिम इतिहास *मारोणी* ये पुस्तकेम म जीवतो करमलो छू..!

              *वडतीया ये बामणेर वलाद छेनी*वडतीया ये आदिम गोरमाटीज छ इ खरो इतिहास धुंडेर फंगटेम न पडता वडतीयार काय लोक वडतीयार- वडते इ नवी रुप प्रचलित करन मुछेमं चावळ आडकान ठाल आडकारी मारु किदे इज गोरुर इतिहासेर शोकांतिका छ. वडतीयारो टोटमेरो आदिम इतिहास *मारोणी* म वाचेन मळीये….!

        सिंधू नायक *अहिवृत्र*इ वराह मुखवटा धारण करतोतो हानू ऐतिहासिक नोंद छ.वराह इ सिंधू नायक अहिवृत्रेर टोटम रं.गोर संस्कृती माइरो *डड्याळ* इ भी सुर वेत्तो हानू डायसाण आज भी कचं,डायेसाणेर इ आकलन डड्याळ इ वराह मुखवटा धारण करतोतो इ सिद्ध करचं.पेनार लोक  सुरेर दतेळी वापरतेते.गोर संस्कृती माइरो इ डड्याळ दुसरो तिसरो कोयी छेनी तो ऋग्वेद वर्णीत सिंधू नायक *अहिवृत्र* सिद्ध वचं इ योगायोग छेनी तो इ एक ऐतिहासिक सत्य छ; करन इ साम्य छ..!

1 9वीं शताब्दी के अनुसंधान के प्रचलन के बाद स्कॉटिश विज्ञानी जॉन फर्ग्यूसन मैकलेनन ने अपने अध्ययन में पशु और पौधों की पूजा (1869, 1870) में एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में कुलदेवता को संबोधित किया। मैकलेनान कुलमितीय घटना की विशिष्ट उत्पत्ति की , लेकिन संकेत मिलता है कि सभी मानव जाति में प्राचीन समय में एक टोटैमिस्टिक चरण के माध्यम से चले बसे । आजही वे स्वरूप स्वतंत्र गण है। भाईयो सोचो हमारी संस्कृति का यह सही इतिहास है। 

*संदर्भ,*

 1-“मारोणी”

 भीमणीपुत्र मोहन गणुजी नायिक 

2- Kumar Suresh Singh, BV Bhanu, Anthropological Survey of India

3- Totemism and Exogamy A Treatise on Certain Early Forms of Superstition and Society (1911-1915)

From -Goar Kailash D Rathod 

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