“गोर बंजारा साहित्य निर्माण ज़रूरी हैं”
लेखक -सुखी चव्हाण,बदलापुर
गोर बंजारा साहित्य निर्माण बहुत आवस्यक है।
साहित्य को जन समूह के हृदय का विकास माना है। साहित्य का मतलब सिर्फ़ मनोरंजन करना नहीं बल्कि पीड़ित अज्ञानी समाज को उपदेश देना हैं। गोर समाज का गौरवशाली इतिहास,पूरको की सिक, सभ्यता,मर्यादा,रहन सहन, जिने कि अलग परिभाषा हैं। इसलिए कहते है साहित्य समाज का दर्पण है, समाज का प्रतिबिंब (छाया) है, समाज का मार्गदर्शक है तथा समाज का लेखा-जोखा है. किसी भी समाज तथा राष्ट्र कि सभ्यता की जानकारी उसके साहित्य से प्राप्त होती है. साहित्य लोक जीवन का अभिन्न अंग है.किसी भी काल के साहित्य से उस समय की परिस्थितियाँ के कारण समाज साहित्य को प्रभावित करता है और साहित्य समाज पर प्रभाव डालता है. दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं. साहित्य का समाज से वही संबंध है,जो सबंध आत्मा का शरीर से होता है. साहित्य समाज रूपी शरीर की आत्मा है. साहित्य को अक्षर कहते वो अजर-अमर है. समाज नष्ट हो सकता है,राष्ट्र भी नष्ट हो सकता है, किन्तू साहित्य का नाश कभी नहीं हो सकता. साहित्यकार समाज में फैली कृति,वि-संगती,विकॄतियों के अभावों, विसमताओं, अ-समानताओं आदि के बारे में लिखता है, इनके प्रति जन-मानस को जागरूक करने का कार्य करता है. साहित्य जनहित के लिए होता है. हमारी सभ्यता अति-प्राचीन तथा समृद्ध थी. हमारी गोर संस्कृति की सभ्यता इतनी उन्नत थी कि हम आज भी उस पर गर्व करते हैं. समाज में अच्छा साहित्य लिखा गया तो समाज का अंधकार मिट सकता है। आज हमें निचले स्थर पर जाकर बंजारा साहित्य का निर्माण करना और पहुँचाना अपना उत्तरदायित्व है। आज समाज में लिखित साहित्य न पहुँचने के कारण अस्थिरता नज़र आ रही है। मौख़िक साहित्य कोई मायने नहि रखता। जब तक मौखिक साहित्य लिखित नहि होता तब तक स्थिरता नहि आएगी। आज हमारे बुज़ुर्गों के पास अमूल्य ज्ञान का भण्डार बक्षे के अंदर बंद हैं केवल आर्थिक परिस्थितीयाँ के कारण से,योग्य मार्गदर्शक ना मिलने के कारण अ-प्रकाशित हैं। उसे उजागर करना अपना कर्तव्य है। “सौ बका” एक लिखा बराबर होता हैं। बुद्धीजीवि और साहित्यिक इनकी जिम्मेदारी है। इस सोने कि खाण को व्यर्थ ना जाने दे। आज गोर समाजका गौरवशाली इतिहास सम्पूर्ण लिखा नही गया ये खेद हैं। जिन्होंने प्रयास किया उनका समाज शुक्र गुज़ार है। आधूरा काम पूरा होना ज़रूरी हैं। समाज कि अगर सच में प्रगती करना हैं,समाज को शिक्षित करना तथा व्यासनाधिसों को व्यसन मुक्त समाज निर्माण करना होगा।साहित्य से समाज में विषमता दूर करने में मदत होगी । किसी भी हाल में वैचारिक साफ़सुथरा साहित्य निर्माण होना आवश्यक हैं। साहित्य गोर बोली मे लिखने का प्रयास हो। .
…….सूखी चव्हाण , बदलापुर
9930051865
सौजन्य: गोर कैलास डी राठोड
Tag: Banjara History,Banjara Books, Gor Banjara, Indian Banjara, Lamani, Lambadi, Bazigar