“गोर बोली अन् भाषा शास्त्र”

” वाते मुंगा मोलारी”

                         भीमणीपुत्र 
“गोर बोली अन भाषा शास्त्र”
‘पर्यायोक्ती अलंकारेर एक उत्कृष्ट उदाहरण’-
‘ बायी छोरीये….

दुधीया तळावेरो पाणी गधळो छ..!

तांडेरो नायक घर छेनी…!’
ये लोकगीदेर डिलेपरेर अलंकारेर सोजा लेयेर आंगड्या ” दुधीया तळाव ” कतो कायी? येरो सोजा लेणो इ महत्वेर छ. कयिक अभ्यासक दुधीया तळाव ये शब्दे अर्थ दुधे सरिको निर्मळ  पाणीरो तळाव हानू लगामेले छ; पणन भाषा शास्त्रेर दृष्टीती देखेतो इ अर्थ चुकीरो ठरचं. मराठी साहित्येम बी इ शब्द आमेलो छ. गोर लोकसाहित्येम तो इ शब्द जाग जाग विकरातू दखावचं. गोर बोलीभाषा शब्देर अर्थ सिद्ध करतूवणा निऋक्ती अन उत्पत्ती ये दी शास्त्रेर आधार लेणू गरजेर छ. भाषा शास्त्रेर आधारेती ” दुधीया तळाव” ये शब्देर अर्थ ” गोड्या पाण्याचे सरोवर” इ अर्थ संयुक्तिक ठरचं. इज अर्थ खरो छ इ सिद्ध करेसारु लोक गीदेर बी आसरो लेणू लागचं. 
उद:-

” दुधीया तळावेरे सिंगाडान काटा

झरपलारी छोरीमं भारी आटा;

मारे चालते वीरानं मारी भाटा..!”
तळावे माइरे सिंगाडार (कंद) स्वभाव गुण आसो छ क, उ आभाळे माइती पडं जे पाणीर तळावेमज उपजचं अन निबजचं..! करन सिंगाडार स्वभाव गुणे परती दुधीया तळावेरो अर्थ ” गोड्या पाण्याचे सरोवर ” इ शास्त्रशुद्ध  ठरचं.23 अलंकारेती गोर बोलीभाषा परिपूर्ण छ.सौंदर्य अन भाषा शास्त्रेर कुणसीबी इंचपटीती मोजे तो बी गोर बोलीभाषा इ कतीज अन केतीज कमी पडेनी. आबं इ लोक गीद कूणसो अलंकार धारण करमेलो छ इ बी देखणू लागचं. 

पेनार नायक, कारभारी, माजूर आसामी ये 7/7 तांडरी करतेते जनारे ये लोक गीदेर इ उत्क्रांत काळ छ.

बायीओ/ छोरीओ..

तांडेर वातावरण गधळो छ.तांडेर नेतृत्व करेवाळे नायकेर नेतृत्व गुण गमागो छ.आपण इज्जत धोकेम आवगी, नायक, कारभारी ये नीतीमूल्य गमान बेसगे, एकेर बकडीम एक छेनी. 

     समाळन रो भेनं! नायके माइरो नेतृत्व गुण हाजर ( घर छेनी ) छेनी. 

इ से केयेसारु ये गीदेर रचनाकार ” घर छेनी- गधळो छ ” आसे पर्यायी शब्देर योजना करमेली छ. करन इ लोक गीद ” पर्यायी अलंकारेर” उत्कृष्ट नमुना छ.

( नतो गधळो पाणी अन नायकेरो कायी संबंध?) 
” मातेपरं झारी हातेमाइ फुलीया..

वलटो फरती चाल…!”
तू ढेर मारसारु मातेपं झारी लेन विटीफुला घालन थाटेमाटेती जारी छी; पणन एक धेनेम रकाडेस, तार कोयी पाटलाग तो न कररे , येर सारु होटो फरन देखती चाल कतो ‘ सिंहावलोकन’ रेदं..! सिंह जसो पाच पचास पगला चालणो वेजाये बाद; कोयी शत्रू आपणो पाटलाग कररो छ कायी येर चाळ लेये सारु हूबरेन होटो मुंडो फेरन देकचं..अवलोकन करचं येनं ‘ सिंहावलोकन’ कचं. ” वलटो फरती चाल ” कतो सिंहावलोकन रेदं.  ये गीदेमाइ प्रियकर आपणे प्रेयसीनं सावध करे सारु ” वलटो फरती चाल ” ये पर्यायी वाक्य प्रकारेर योजना करमेलो छ.इ वाक्य प्रकार ” पर्यायोक्ती  अलंकारेर” दर्जेदार नमुना  छ.

       गोर बोलीभाषा 23अलंकार,  3 शब्द शक्ती,  9 काव्यरस,सौंदर्यस्थळ ये से वातेती परीपुर्ण छ. ओर मालकी  शब्देन श्रीमंती छ. ऊ कतीज केती कमी छेनी. 

     गोर लोकसाहित्येनं ” फोक- लोर” ये पंगतेम बसारणू इ चुकीरो ठरचं.गोर मौखिक साहित्य  इ तांडा जीवनेरो अस्सल जगणेरो एक सुसंस्कृत आविष्कार छ.
‘ आपकाण वणान आंबा पाको’

‘ आपकाण वणान मोवडा चुंवो’

ओतं गोबरेर भलोइजोत ढगला पडो छ’!

तांडेर इ शास्त्रशुद्ध भाषा व्यवहार भाषाशास्त्रेर अभ्यासकेन एक आव्हान ठरचं….!

                      भीमणीपुत्र

                   मोहन गणुजी नायिक

सौजन्य:- गोर कैलास डी राठोड

गोर बंजारा आँनलाईन न्यूज पोर्टल मुंबई महाराष्ट्र राज्य.