“वाते मुंगा मोलारी”
भीमणीपुत्र
– गोर बोली भाषा बचाओ अभियान –
” भाषावार प्रांत रचनारो षडयंत्र, गोर संस्कृतीरो वैदिकिकरण ये आंधी धुंदाडेमं गोर बोलीभाषा जीवत रकाडणो ई गरजेर वेगो छ; भाषा इ संस्कृतीर वाहक छ…भाषा मरगी तो संस्कृती मर जावचं..संस्कृती मरगी तो ओ भाषिक लोक गणेरो ‘ डायनासोर ‘ बी वेये सवायी रेयेनी..!
आतेर व्यवस्था भाषार विभागणी दी स्तरेम करमेली छ. 1, घटनात्मक 22 भाषा. 2, दस हाजारे पेक्षा जादा लोक जे भाषार वापर करते विये ओसी मातृभाषा.आसे दी स्तरेर भाषार विकासे सारु शासन आर्थिक तरतूद कर सकचं..दस हाजारे पेक्षा जादा लोक जे भाषार बोले सारु वापर करते विये, ओसी भाषार मातृभाषा करन जणगणनारे अहवालेमं नोंद वचं.बाकी दस हाजारे पेक्षा कमी लोक जे भाषार वापर करते विये वोसी भाषार नोंद अन्य भाषा कतो कचरेर वोल्डीमं रचं. आज मितीमं गोरबोलीरो स्थान ;भाषारो एक “डाटा”न रेयेती कचरेर वोल्डीमं छं कं,मातृभाषाम छं? ई बी धुंडन काडणो गरजेर छं…कारण ये व्यवस्थाती कयीक बोली भाषा मण्णेरो कडापो भोगरी छं……!
“गोरबोली भाषा ई गोर गणेर याडी बोली छं;याडी बोलीती बेईमानी करणो ई जलम देयेवाळी याडीर दुधेती बेईमानी करे आवढा गुनो छं…!
चालो याडीनं बचावां …..!लेंगी,टेर,नातरो, ओळंग,मळ्णो,ढावलो,हावेली,गीद,गीत,साकी,साक्तर,ये से बोली भाषा साहित्य जतन रकाडा…….!!
=भीमणीपुत्र
मोहन गणुजी नायिक
सौजन्य: रविराज एस. पवार
Chief editor
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