गोर संस्कुती,गोरमाटी कविता

गोर संस्कुती

रेगी कोनी नायकी
रेगो कोनी नसाब रे
रेगो कोनी टांढो
रेगो कोनी नायक
कत जारो गोरूर समाज रे…।।

रेगी कोनी आटी
रेगे कोनी चोटला
रिदी कोनी गोरूर वळख
कत जारी गोरूर संस्कुती रे..।।

वेरे कोनी मुसळ वाया
रेगो कोणी डपडार ताल
वाजे लाग डी, जे ताश्या रे
लागे लागो तीन वाजता वाया रे

रेगो कोनी बापुर बोल रे
रेगो कोनी बापुर समाज रे
छेनी मार कन चुडी छेनी
मारकन बिचवा कु जावूरे
तिजेर तेवारेन……।।।

केनी आयनी होळीर लेंगी
से बोल छ हिंदी , मराठी
गाना रे कत जारी गोरूर
संस्कुती रे…..।।

कवि.
प्रदिप मानसिंग आडे

सौजन्य:-गोर कैलास डी राठोड

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