दोस्तों , में प्रदीप मानावत ये बतना चाहता हूँ कि वास्तव में बंजारा को जिस नज़रिये से हमें भारतीय फिल्मों ने दर्शाया है, आजतक हमे उसी नाम से जाना जाता हैं, परन्तु लोगो को हमारी वास्तविकता का अभी तक पता नही है की हम लोग असली क्षत्रिय गोर वंशों की वंशावली में आते है, मुगलों ओर अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले असली क्षत्रिय गोर सेना के वंसज है हम, आज मेरे परम मित्र संदीप भईया अमेरिका से अपना एक लेख आपके सामने रख रहे है।
कौन हैं हम “गोर” या फिर “बंजारा” ??
अगर यदी आप अपने आप को “बंजारा” काहोंगे, तो लोग शायद आपको या तो बिन बजाकर सपेरो को नचानेवाले बंजारा जाती के समझेगे, या रास्ते पर टुटी फुटी कार या तंबु लगाकर जडी बुटी बेचनेवाले बंजारा जाती के समझेगे, या फिर गाना बजाकर अपनी बीबी या बेटी को नचाकर पेट भरणे वाले बंजारा जाती के समझेगे….. अगर आप होशियारी दिखाकर काहोंगे कि हम “गोर-बंजारा” जाती के है, पर लोगो के पास इतना वक्त नही कि वो ये सब समझ पाये और ऊन्हे इन सब बातो को समझणे कि जरुरत भी नहि, वो आपको बंजारा ही समझेगे. क्योकी हमारी फिल्मो ने हमेशा बंजारा को सिर्फ अन्य बंजारो की नजर से नाचणे गाणे वालो के रुप मे दिखाया है…. इन्ही सब वजह से दक्षिण भारत, मध्य भारत और उत्तर भारत के पढे लिखे “गोर” लोग अपने आप को बंजारा कहने मे शर्म महसुस करते है और वह अपनी जाती को छुपाते है क्योकी इस बंजारा परिभाषा का अन्य समाज मे कोई महत्व नही है, और जब कि हम बंजारा है हि नही तो अपने आप को बंजारा कहकर क्यो अन्य समाज के बीच और अपने दोस्तो के बीच अपना मजाक उडा ले…..
बात पुराने जमानेकी है जब हमारे “गोर” लोग लदेनी का बेपार करते थे. भारत मे जब मुघलो का शासन आया तो उन्होने सभी गैर मुस्लिम लोगो को हिंदु कहना शुरु कर दिया और साथ हि साथ सभी घुमंतु जाती को बंजारा कहना शुरु कर दिया. अब इस बंजारा वर्गीकरण मे कम से कम बीस से तीस अलग अलग जातीया आती हैं और इन मे सबसे बडी तादाद वाली, ताकद वाली और सबसे प्रगतिशील जाती हैं “गोर” जो भारत के हर राज्य में और भारत के बहार कई देशो मे अपनी मेहनत और लगण से अपनी एक अलग पहचान बनाये हुये हैं.
बाकी की जो अन्य छोटी छोटी बंजारा जातीया है उनका वास्तव सिर्फ दक्षिण भारत के ३-४ राज्यो मे है जैसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान. इन अन्य बंजारा जातीयो से हम “गोर” लोगो का कभीभी रोटी-बेटी व्यवहार हुआ नहीं है, और ना तो कभी हमने इनसे किसी लदेनि के बेपार में कोई भागीदारी की है, पर “गोर” लोगो कि सामाजिक और आर्थिक स्तिथी को देखकर ये लोग बहोत बार यह जताने कि कोशिश करते हैं कि वो भी “गोर” हैं, पर जब उन से उनके गौत्र/पाढा/जात के बारे मे पुछा जाये तो वो कुछ बता नही पाते. उनका हम एक अन्य जाती के तौर पर आदर करते हैं, पर अगर वो “गोर” नही तो हम उन्हे “गोर” क्यों माने.
हमारे कुछ जाने माने इतिहास कारो ने घर मै बैठकर हि “गोर” समुदाय का इतिहास लिख डाला, हमारी वैभव शाली परंपरा को इन्होने सिर्फ अपनी बौद्धिक समझ के हिसाब से लिख डाला, इनका यह निजी फर्ज था कि जिस जिस राज्य में गोर लोग बसे हुये हैं वंहा जाकार – वंहा कुछ दिन रहकर बडे बुजुर्गो से बात करके, बात को समझ के इतिहास लिखे, परंतु दुर्भाग्यवश इनका इतिहास इनकि लिखीगई हर एक नई किताब के साथ बदल जाता है, आणे वाली नई पिढी को इतिहास के बारे मे गुमराह करणे का काम इन लोगो ने किया हैं.
हम “गोर” लोग भारत के जिस राज्य मे भी बस गये, वहा के लोगो ने हमे एक नया नाम दे दिया, महाराष्ट्र मे लमाणी, कर्नाटका मे सुगाली, आंध्रा मे लंबाडी, पंजाब-हरियाणा मे बाजीगर/ लभाना, जम्मू काश्मीर मे बंजारे तो कन्याकुमारी मे लंभाडे कहा जाने लगा और हमने भी यह स्वीकार कर लिया पर कभी उन लोगो को पलटकर यह कहने की कोशिश नही कि हम “गोर” है और हमे बस “गोर” हि कहिये. क्या आपने कभी पंजाबी, गुजराथी, मारवाडी या राजस्थानी को भारत के किसी भी राज्य मे अन्य नाम से बुलाते हुए देखा क्या, तो फिर ऐसा व्यवहार हमारे साथ हि क्यों….
हमे अपने आप को “गोर’ हि समझना चाहिये, जितना जल्दी हम इस फिल्मी “बंजारा” नाम को हमसे अलग करेंगे उतणा हि हमारी आणे वाली पिढी के बारे मे अच्छा होगा और उन्हे अपने आप को “गोर” कहलाने मे फक्र महसुस होगा.
अब आप बताओ आप कौन हो, “बंजारा” या फिर “गोर” ??
(मै यह सब बाते भारत के अनेक राज्यो के तांडो मे जाकार वंहा रहणे के बाद, वंहा के बडे बुजूर्गो से बात करणे के बाद, पिछले १०-१२ साल के सामाजिक अभ्यास के बाद लिख रहा हु).
संदीप राठोड (भुकीया – खेतावत)
वॉशिंग्टन डी सी, अमेरिका.
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