दर्शन दो सेवालाल
दर्शन दो सेवालाल लाल मेरी आँखियाँ प्यासी रे !
मन मंदिर कि ज्योति जगा दो, गड- गड वासी रे !!
मंदिर-मंदिर घर-घर मे मुरत तेरी
फिर भी न दिखे सुरत तेरी !
यह सुभ बेला आयी मिलन की,
पुर्णमासी रे !!
द्वार दया का जब तु खोले,
पंचम स्वर में गूँगा बोले !
अंधा देखे,
लंगडा चलकर पहुँचे काशी रे !!
पानी पीकर प्सास बुझाऊँ,
नैनन को कैस समझाऊँ !
आँख मिचौली छोडो़ अब तो,
मन के वासी रे !!
लाज न लुट जाए प्रभु मेरी,
नाथ करो ना दया में देरी !
तिन लोक छोड़ के आओ,
गगन विलासी रे !!
द्वार खडा़ कब से मतवाला,
माँगे तुमसे हाथ तुम्हारा !
‘रिवराज ‘ की प्रभु िवनती सुनलो,
भक्त़ विलासी रे. !!
धन्यवाद
गोर. रविराज एस.पवार
शामपुरहळ्ळि तांडा, वाडी, कर्नाटक
भारत बंजारा भक्त़ि सेवामाळा समिती
कलर्बुगी विभाग. कोष्याध्क्ष/खजांची.
श्री सेवालाल ग्रंथालया
संस्थापक
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