पोहरादेवी: बंजारा समाज की अपनी सभ्यता, सस्कृति, भाषा, आचार-विचार, रहन सहन, वेशभूषा और परंपरा है. आज इस विशेष संस्कृति को बचाना अत्यंत आवश्यक है. समय के साथ व आधुनिकता के इस युग में हम अपनी भाषा व संस्कृति, परंपरा को भूलते जा रहे है. आधुनिक व पढ़ा लिखा परिवार तो बंजारा संस्कृति व भाषा भी भूलते जा रहे है, ऐसी स्थिति रही तो कुछ वर्ष में हम पूरी तरह से अपनी संस्कृति छोड़कर अन्य किसी धर्म की संस्कृति को अपना रहें होंगे. धर्म परिवर्तन करते रहेंगे. ऐसा इसलिए होगा की बंजारा का अपना कोई विशेष धर्मक्षेत्र नहीं है ( है भी तो वहा कुछ प्रेरणा देने के साधन नहीं है), अपना धर्म गुरु नहीं है(है भी तो उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया जाता), इस संस्कृति के कोई प्रचारक नहीं, अपना कोई इतिहास नहीं है, धार्मिक ज्ञान व संस्कार न होने के कारण लोग अंधश्रध्धा में जा रहे है, इन सभी को लोगो में जागृति व अपनी सभ्यता को संवर्धन (बचाए) रखने के लिए धर्मपीठ और भक्तिधाम की आश्यकता होगी.
धर्मपीठ इसी की आवश्यकता को पूरी करेंगा, जहाँ से हमें अपनी संस्कृति जानने को मिलेंगी, अपनी बोली – भाषा का संवर्धन होगा, धर्मगुरु होगा, अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जायेगा, धर्मान्तरण को रोका जाएगा, अंधश्रद्धा से रोका जाएगा , धर्मगुरु की आज्ञा का पालन किया जाएगा, आध्यात्मिक मन शांति की मिलेंगी, अपना ग्रंथालय होगा, तरुण पीढ़ी को अपने धर्म-सस्कृति की प्रेरणा मिलेंगी, धर्मपीठ में बंजारा संस्कृति की सभी धरोहर को सहेजकर रखा जाएगा, हमारे सभी महापुरुषों को धर्मपीठ में उनके कार्यो की गाथा इतिहास स्वरुप में ग्रंथो में सहेजकर रखेंगे, आनेवाली तरुण पीढ़ी इनके आदर्शो को, इनके संस्कारो से, इनके गुणधर्मो से प्रेरणा व संस्कार लेंगे. धर्मपीठ/भक्तिधाम श्रधास्थान के रूप उभरकर बंजारा संस्कृति/धर्म बढाने का कार्य करेगा, आनेवाले भक्तगणों को रहने, खाने, शौचालय की सुविधा भक्तिधाम में मिल सकती है, हमारी संस्कृति को विशेष आधार बना रहेगा, विश्व के बंजारों के लिए धर्मपीठ/ भक्तिधाम श्रद्धास्थान रहेगा. दुनिया के समक्ष हमारी संस्कृति का विशेष पहचान बनी रहेगी, अन्य समाज के लोगो के लिए बंजारा धर्मपीठ बंजारा संस्कृति का शोध के लिए, व पर्यटन क्षेत्र के रूप में हमारी संस्कृति को जानने- पहचानने के लिए यात्री आयेंगे. इस तरह से बंजारा काशी क्षेत्र पोहरादेवी में ऐसे और कई भक्तिधाम बनने चाहिए, पोहरादेवी बंजारों की काशी तो है, और बंजारा समाज व अन्य लोगो के लिए भी पर्यटन क्षेत्र भी बने.
भक्तिधाम के संस्थापक श्री किसनराव और धर्मपीठ संस्थापक संत श्री रामराव महाराज व श्री किसनराव राठोड़ द्वारा इस धर्मपीठ की स्थापना की और धर्मपिठेश्वर की गद्दी पर परम पुज्य श्री श्री संत रामराव महाराज ने गद्दी ग्रहण की.
भक्तिधाम (धर्मपीठ) की विशेषता
आप जब पोहरादेवी पहुचोगे तो पोहरादेवी से करीब ६०० से ७०० मीटर के दुरी पर आप को भव्य भक्तिधाम दिखाई देगा. भक्तिधाम को उमरी (करीब १ km की दुरी पर) और पोहरादेवी के मध्य में बनाया गया, जब आप भक्ति धाम में प्रवेश करोगे तो आप विशाल प्रवेश द्वार (संत धावजी महाराज प्रवेशद्वार ) से अन्दर जाना होगा. जैसे ही आप अन्दर जाओगे तो आपको खूबसूरत बगीचा का नजारा देखने मिलेगा. जैसे जैसे आप आगे बढोगे आप को माता जगदम्बा के दर्शन मिलेंगे, उसके बाद आप को भव्य मंदिर के उपरी हिस्से पर चारो तरफ से खुले गुम्बद में आप को संत सेवालाल महाराज की करीब 5kg वजनी स्वर्ण मूर्ति के दर्शन करने मिलेंगे.
संत रामराव महाराज ने संत श्री सेवालाल महाराज की स्वर्ण मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा कर इस मूर्ति की स्थापना धर्मपीठ के प्रागण में विशेष मंदिर के खुले गुम्बद में स्थापना की. इस मंदिर को इस तरह से बनाया गया है की मंदिर के नीचले हिस्से में संत सेवलाल महाराज के माता व पिताश्री के समाधी स्वरुप में बनाया गया है, मंदिर के समक्ष आपको भव्य तोलाराम घोडा व गरासिया सांड खड़े दिखाई देंगे. और मंदिर के उपरी हिस्से में, पूरी तरह से खुले गुम्बद (गर्भगृह) में मध्य में संत सेवालाल महाराज की स्वर्ण मूर्ति को रखा गया है. जब दर्श्नार्थी महाराज की स्वर्ण मूर्ति को भक्तिधाम के प्रांगाण से कहीं से भी देख व दर्शन ले सकते है आपको कोई पंक्ति लगाकर कतार में खड़ा नहीं रहना है. भक्तिधाम में दर्शनार्थी के रहने के लिए कई सारे रूम बनाये गए है, सैकड़ो शौचालय, स्नानगृह, प्याऊ जैसी सुविधा भक्तिधाम में मिलेंगे. आप को हमुलाल महाराज, जेतालाल महाराज, सामकी माता, धावजी बापू की भव्य मंदिर में दर्शन करने मिलेंगे, और बंजारा समाज के सभी महान पुरुषो के मंदिर मिलेंगे. भक्तिधाम में ही विशाल भक्ति सत्संग मैदान बनाया गया है भक्तगण भक्तिधाम में आकर भक्ति व सत्संग का आनंद ले सके.
Govind Rathod
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