भीमणीपुत्र मोहन नाईक के प्रयाससे गोरबंजारा साहित्य में एक नया मोड़ आया। इसे विशेषत: तात्कालिक गोर संस्कृति और साहित्य से उत्तेजना मिली। जैसे अन्य साहित्य में ‘रीति’ या ‘काव्यरीति’ शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्तिऔर रस, अलंकार आदि के निरूपक बहुसंख्यक लक्षणग्रंथों को ध्यान में रखते हुए इस समय के काव्य को ‘रीतिकाव्य’ कहा गया। इस तरह हमारे काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत गोरबंजारा साहित्यमें शृंगारी प्रवृत्तियों निस्संदेह एंव निसर्गतः संकेत मिलते हैं। *गोरपान* उसीका उत्कृष्ट नमुना है।
गोरबोली भाषाका एक सौंदर्य संपन्न लावण्य रूप इस बंजारा लोकगीतोंमे प्रतित होते है। इसके खोज का असामान्य कार्य बापूने किया है।
*पोरी रातेरी थाडी थंडीरं*
*पींजाराओ पींज दे दं*
*मारी ओडेरी सोडे थाडीरं*
*पींजाराओ पींज दे दं*
*मनं सासूरो सासरवासं रं*
*पींजाराओ पींज दे दं*
*जसो येडीमं काटो सलंsरं*
*पींजाराओ पींज दे दं*
*तारी हारे गी घणं दुर रं*
*पींजाराओ पींज दे दं*
*तारी गाडीरी पींजणी पींज लं*
*पींजाराओ पींज दे दं*..!
बापू एक एक विख्यात साहित्यिक /कवि राजाश्रित भावके है। जिसके फलस्वरूप इसमें चमत्कारपूर्ण व्यंजना की विशेष मात्रा तो मिलती है परंतु *पिंज देद* काव्य हमसे विमुख भी हो गई।
बापूके काव्यधारामें में अलंकार और रसिकप्रिया में रस का सोदाहरण निरूपण है। जिसमें गोर संस्कृति की तन्मयता के स्थान पर एक सजग कलाकार की प्रखर कलाचेतना प्रस्फुटित है। गोर काव्य का अजस्र स्रोत प्रवाहित हुआ जिसमें नर-नारी-जीवन के रमणीय पक्षों और तत्संबंधी सरस संवेदनाओं की अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्ति व्यापक रूप में पायी जाती है। इस बातको हम गोरभाई बहनें पहलीबार महसूस कर रहै है। उनका साहित्य अधिकतर शृंगारमूलक और कलावैचित्रय से युक्त है। उपरोक्त गीतसे इसी प्रेम के स्वच्छंद भावोंको बापू गोरबंजारा प्रेम की गहराइयोंको स्पर्श किया है। मात्रा और काव्यगुण दोनों ही दृष्टियों से उनका संशोधित काव्य उस समय का नर-नारी-प्रेम और सौंदर्य की मार्मिक व्यंजना करनेवाला काव्यसाहित्य महत्वपूर्ण है। उन्होंने विभिन्न काव्य रस और वीरकाव्य के सृजन को भी प्रेरणा दी है। इस लिए वे गोर बंजारा साहित्यिकोमें में भूषण प्रमुख हैं जिन्होंने अनोखी शैली को अपनाते हुए भी गोर संस्कृति भाव ओजस्वी वर्णन किया। इनके द्वारा *गोरपान* किताबमें लिखित काव्योंमे में रस, अलंकार और नायिका के लक्षण देकर कवित्त सवैए में प्रेम और सौंदर्य की कलापूर्ण मार्मिक व्यंजना की है। जैसे भीमाणीपुत्रका का गोरबंजारा छंदों का निरूपण व्यक्त होता है। विभिन्न मुद्राओंवाले अत्यंत व्यंजक सौंदर्यचित्रों और प्रेम की भावदशाओं का अनुपम अंकन इनके सहिष्णुतापूर्ण साहित्यमें गोरपाणके माध्यमसे जहाँ स्वच्छंद प्रेम की अभिव्यक्ति है ।गोर प्रेम की तीव्रता और गहनता की अत्यंत प्रभावशाली व्यंजना इस किताबमे प्राथमिकता से है।
*पिंज देद* गोर काव्यमेः ऐहलौकिकता, श्रृंगारिकता, और अलंकार-प्रियता इस गोरबंजारा युग की प्रमुख विशेषताएं हैं। रस, अलंकार वगैरह काव्यांगों के लक्षण लिखते समय उदाहरण के रूप में – उन्होंने विशेषकर श्रृंगार के आलंबनों एवं उद्दीपनों के उदाहरण के रूप में – *गोरपान* को लिखा है।
श्रृंगार रस गोरपानमें रसराज
रुपमे समाया है। श्रृंगार का अर्थ हुआ कामोद्रेक की प्राप्ति या विधि श्रृंगार रस का स्थाई भाव दांपत्य प्रेम है । पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका कि प्रेम की अभिव्यंजना की श्रृंगार रस की विषय वस्तु गोरपानमें युक्त है।
श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दो प्रमुख भेद *पिंज देद* हैं इन दोनोंने कितने क्रियाकलाप सुख कारण का भाव वेदनाएं स्थान पाते हैं इसको विस्थापन की कोई सीमा नहीं है इसी कारण ही गोर काव्यकी दृष्टि सभी साहित्यमें सरस है। इसी कारण गोरबोली को घटना की 8 वी सूचिमें निश्चित तौरपर समाविष्ट होगी ।
उपरोक्त वजह से भीमणीपुत्रको इस बंजारा युग का प्रतिनिधिक साहित्यिक माना गया है। इनके इस महान कार्य का सन्मान मुंबईमे 2018 मे होनेवाले अ भा गोर बंजारा साहित्य संमेलन के संमेलनाध्यक्ष रुपमें हो रहा है।
*गोरबोली भाषा एक सौंदर्य संपन्न लावण्य रूप*को और गोर संस्कृतिको को उजागर करनेवाले भीमणीपुरत्र महान साहित्यिक को लंबी उम्र मिले।
शुभकामनाकै साथ !!
*प्रा.दिनेश सेवा राठोड*(साहित्यिक)
(अॉल इंडिया बंजारा सेवा संघ)
प्रमुख प्रतिनिधी: रविराज एस. पवार
8976305533