प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन
किसी काम का नहीं
परम पूज्य स्वामी सत्यानन्द महाराज
जी द्वारा रचित भक्ति प्रकाश ग्रन्थ
का एक अंश.
मन तो तुम मैं रम रहा, केवल तन है दूर.
यदि मन होता दूर तो मैं बन जाता धूर.
भावार्थ: एक जिज्ञासु परम पिता परमात्मा को शुक्रिया अदा करते
हुए कहता है कि हे प्रभु!! मुझ पर तुम्हारी कितनी अधिक कृपा है
कि मेरा मन आपके सुमिरन में लगा हुआ है. मैं केवल तन से ही आपके
पावन चरणों सेदूर हूँ परन्तु मेरा मन आपके चरणों की स्तुति में
लगा हुआ है. यदि मेरा मन भी आपसे दूर होता तो में कुछ
भी नहीं होता, मेरी स्थिति धूल के समान होती.
प्रभु ने यह मानव काया हमें उसका नाम लेने के लिए दी है अर्थात
इस मानव जन्म का उद्देश्य नाम के जाप द्वारा प्रभु की
प्राप्ति करना है. यदि हमने सारा जीवन सांसारिक
विषयों तथा माया में ही व्यर्थ कर दिया और प्रभु का नाम
नहीं जपा तो
हमारा जीवन किसी काम का नहीं तथा हमारी काया की स्थिति धूल
से ज्यादा नहीं है.
जय सेवालाल
गोर.रविराज एस.पवार
स्वयंसेवक
शामपुरहळ्ळि तांडा
तालुक,चित्तापुर, जिल्ला,गुलबर्गा.
र्कनाटक.585218
08976305533