राष्ट्रीय एकता का प्रतीक गणेशोत्सव

विघ्नहर्ता गणेश समस्त
देवताओं के अधिष्ठाता हैं. हमारे
यहां किसी भी कार्य का शुभारंभ
गणेश के पूजन के साथ होता है।
भारतीय संस्कृति में गणेश को
सवरेपरि स्थान और अपार श्रद्धा
प्राप्त है। भगवान गणेश आबालवृद्ध
सभी को प्रिय और आत्मीय लगते
ह्।ं स्कंद पुराण के अनुसार भाद्रपद
मास के शुक्ल पक्ष की चतुथी के
दिन भगवान गणेश अवतरित हुए
थे। इस उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष भाद्रपद
के शुक्ल पक्ष की चतुथी से लेकर
चतुर्दशी तक गणेशोत्सव मनाया
जाता है। गणेशोत्सव वैसे तो पूरे
देश में बड.o हर्षोल्लास के साथ मनाया
जाता है, किंतु महाराष्ट्र का
गणेशोत्सव विशेषरूप से प्रसिद्ध है।
मान्यता है कि इन दस दिनों के
दौरान यदि श्रद्धा और विधि-विधान
के साथ गणेशजी की पूजा की
जाए तो जीवन की समस्त बाधाओं
को दूर कर विघ्नहर्ता गणेश अपने
भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों
की वर्षा करते ह्।ं दस दिनों तक
चलनेवाला गणेशोत्सव हिंदुओं की
आस्था का एक ऐसा प्रमाण है,
जिसमें शिव-पार्वती नंदन श्री गणेश
की प्रतिमा को घरों, मंदिरों और
पंडालों में साज-श्रृंगार के साथ चतुथी
के दिन विधि-विधान के साथ
प्रतिस्थापित किया जाता है। दस
दिनों तक प्रतिदिन गणेशजी की
प्रतिमा का विधिपूर्वक पूजन किया
जाता है और ग्यारहवें दिन इस
प्रतिमा का बडी घू-धाम के साथ
जलाशय, नदी या समुद्र में विसजर्न
किया जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष
की चतुथी को गणेशजी की सिद्धि
विनायक स्वरूप में पूजा होती है।
शास्त्रों के अनुसार इसी दिन
गणेशजी दोपहर में अवतरित हुए
थे, इसलिए यह चतुथी विशेष
फलदायी बताई जाती है। पूरे देश
में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम
से प्रसिद्ध है। भारत में यह त्योहार
प्राचीन काल से ही हिंदू परिवारों
में मनाया जाता है। इन दस दिनों

के दौरान देश में वैदिक सनातन
पूजा पद्धति से अर्चना करने के
साथ-साथ अनेक लोक सांस्कृतिक
रंगारंग कार्यक्रम भी होते हैं, जिनमें
नृत्यनाटिका, रंगोली, चित्रकला
प्रतियोगिता, हल्दी उत्सव आदि
प्रमुख ह्।ं
गणेशोत्सव में गणेश की प्रतिमा
में प्राणप्रतिष्ठा से विसजर्न तक विवि-
विधान से की जानेवाली पूजा एक
विशेष अनुष्ठान की तरह होती है,
जिसमें वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों
से की जानेवाली पूजा दर्शनीय होती
है। पुष्पांजलि और महाआरती का
नजारा तो बस देखते ही बनता है।
गणेश चतुथी का दिन यदि रविवार
या मंगलवार हो तो इसे महाचतुथी
का योग कहा जाता है। महाचतुथी
के दिन चंद्र दर्शन वजिर्त है।
श्रीमद्भागवत की एक कथा के
अनुसार इस दिन चंद्र का दर्शन
करने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण
को मिथ्या कलंक का दोष लगा
था, जिससे मुक्ति पाने के लिए
उन्होंने विधिवत गणेश चतुथी का
व्रत किया था। भविष्य पुराण में
इस तिथि को शिवा, शांत और
सुख चतुथी भी कहा गया है।
गणेशजी का महत्व भारतीय संस्कृति
में सवरेपरि है। उन्हें हर शुभकार्य
के आरंभ में और हर बाधा या
विघ्न के समय याद किया जाता
है। श्रीगणेश को विघ्नविनाशक
माना जाता है। उन्हें देवसमाज में
सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें बुद्धि
का देवता माना जाता है।
गणेशोत्सव न केवल महाराष्ट्र और
भारत में बल्कि पूरे वेश में हर्षोल्लास
के साथ मनाया जाता है। लोकमान्य
तिलक ने 1893 में सार्वजनिक
गणेशोत्सव का शुभारंभ किया था
और यह उत्सव पूरे देशभर में मनाया
जाने लगा। तिलक जी ने पुणे के
विंचूरकर वाडी में पहले गणेशोत्सव
का शुभारंभ किया था। उस समय
अंगुलियों पर गिने जा सकें, बस
उतने ही गणेशोत्सव मंडल थे। आज
इस उत्सव ने बडा स्वरूप प्राप्त कर
लिया है। आज यह मात्र उत्सव न
रह कर लोकोत्सव का स्वरूप प्राप्त
कर लिया है। पेशवाओं ने
गणेशोत्सव को प्रोत्साहन दिया था।
महाराष्ट्र के लोकजीवन में गणेशजी
को कितना महत्व प्राप्त है, इसका
अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता
कि पुणे में एक कस्बे का नाम
गणपति’ है। महाराष्ट्र के नवनिर्मित
जिला पालघर में भी गणपति’ नाम
का एक तालुका है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
ने गणेशोत्सव को जो स्वरूप दिया,
उससे गणेशोत्सव राष्ट्रीय एकता के
प्रतीक बन गएऑ। तिलक के प्रयास
से पहले गणेश पूजा केवल परिवार
तक सीमित थी। गणेश पूजा को
सार्वजनिक महोत्सव का स्वरूप
देते समय उन्होंने उसे केवल धार्मिक
अनुष्ठान तक ही सीमित नहीं रखा,
बल्कि आजादी की लड.ाई,
छुआछूत दूर करने और समाज को
संगठित करने तथा आम आदमी
का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया
बनाया और उसे एक आंदोलन का
स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने
ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में
महत्वपूर्ण योगदान दिया। लोकमान्य
बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में
गणेशोत्सव का जो पौधा रोपा था।
वह अब विराट वटवृक्ष का रूप ले
लिया है। इस समय केवल महाराष्ट्र
में ही 50 हजार से अधिक
सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल ह्।ं
इसके अलावा आंध्र प्रदेश,
कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश
और गुजरात में भी काफी संख्या में
सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल ह्।ं
वीर सावरकर और कवि गोविंद
की संस्था मित्रमेला’ के माध्यम से
गणेशोत्सव के अवसर पर
देशभक्तिपूर्ण पौवाडे’ सुनाकर लोगों
में देशभक्ति का भाव जगाया जाता
था। गणेशोत्सव का उपयोग
आजादी की लड.ाई के लिए किए
जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल
गईऑ। बाद में नागपुर, वर्धा,
अमरावती आदि शहरों में भी
गणेशोत्सव ने आजादी का नया
आंदोलन छेड. दिया था। अंग्रेज
भी इससे घबरा गए थे।