विश्व बंजारा दिवस

बंजारा समाज और संस्कृति विश्व में आद्वितीय है हमारी संस्कृति के अन्दर समस्त धर्मों, जातियों की संस्कृति मिश्रित है। यूं कहे बंजारा संस्कृति विश्व की संस्कृति है। विश्व के अधिकांश देशों में बंजारा जनजाति निवासरत है, यह अगल बात है कि किसी–किसी देश इस जनताति को अलग नाम से जाना जाता है। अभी हाल ही में एक विश्वस्तरीय लेख पढ़ने में आया जिसमें बंजारा की भारत में जनसंख्या करोड़ों में बतायी गयी है। इतनी अधिक जनसंख्या किसी भी एक जाति की शायद ही हो। परंतु दुर्भाग्य से हम अपनी संस्कृति को राष्ट-ाsय पटल पर प्रमुख स्थान नहीं दिला पा रहे हैं। इतना ही नहीं भारत जैसा संस्कृति, धर्म, संस्कारवान देश दुनिया में कहीं नहीं है। फिर भी हम पीछे क्यों हैं ।

यह लेख में विश्व बंजारा दिवस को समर्पित करना चाहता हूँ। इसलिए भावनाओं पर नियंत्रण थोड़ा मुश्किल काम है। आज से लगभ 10 वर्ष पूर्व मैंने जब पहली बार रामनारायण पंचांग/कैलेण्डर में मुख्य दिवसों में 8 अप्रैल को “विश्व बंजारा दिवस” लिखा देखा तो मुझे बहुत गर्व हुआ, परन्तु शिघ्र मैंने अपने आप से पूछा कि “विश्व बंजारा दिवस” है क्या…? बस इसी प्रश्न ने मुझे 3–4 साल तक सामाजिक बंधुओं, इतिहासकारों से जोड़ने का मौका दिया, इस दौरान मैंने रामनारायण पंचाग के कार्यालय पर कितनी ही फोन से संपर्क किया, अन्य प्रांतों के सामाजिक बंधुओं से पूछा परंतु कहीं से भी मुझे संतोषप्रद व युक्तियुक्त उत्तर नहीं मिल सका। तभी इस विषय को सामाजिक युवा मित्रों से शेयर किया तो एक बात स्पष्ट हो गई कि हम इतिहास के चक्कर में न जाकर इस दिन को हम वैभवशाली बनाने के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगायेंगे। वर्ष 2007–08 भारतीय इतिहास में कई फैंसले, परिवर्तन, घटनाओं के लिए याद रखा जायेगा परंतु बंजारा समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण रहा बंजारा युवा संघ का गठन होना। मेरा सौभाग्य है कि में गठन कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण सदस्य हूँ, क्योंकि इसके पूर्व भी हम सामाजिक कार्य करते थे परन्तु बेनर, मंच हर बार बदल जाता था।

बंजारा युवा संघ ने अपने गठन के पश्चात पहला कार्यक्रम 8 अप्रैल 2007 को “विश्व बंजारा दिवस” सरस्वती कुण्ड शिवालय मंदिर में मनाया । फिर तो बंजारा युवा संघ ने प्रतिवर्ष भव्य कार्यक्रम करने का निर्णय कर लिया था। इतनी सब बातों का जिक्र करने से मेरा तात्पर्य सिर्फ इतना है कि हम इस दिवस को बंजारा गर्व दिवस के रूप में मनाकर इसे एक नये रूप में प्रस्तुत करे और एक नई पहचान बनाये ज्यादा भूतकाल (Bतिहास) में न जाये क्योंकि इतिहासकारों ने बंजादा बलिदान, संस्कृति की उपेक्षा की है… इसलिए वर्तमान को सुन्दरतम तरीके से जिये, ताकि वर्तमान जब भूतकाल बने और भविष्य की आने वाली पीढ़ी इस इतिहास को पढ़े तो गर्व से कहें मैं बंजारा हूँ।
कहा भी गया है– माना अंधेरा घना है, पर दीपक जलाना कहाँ मना है।।