आदरणीय समाज बंधुओं जय चारभुजानाथ ! जय सेवालाल !
सभी समाज बंजारा समाज बंधुओं को गणतंत्र दिवस एवं रक्षाबंधन की हार्दिक–हार्दिक बधाई । ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि भाई–बहन के इस पवित्र त्यौहार पर आप सभी के परिवार में खुशियाँ एवं समृद्धि आएं । आजादी के पर्व पर आप सभी देश के प्रति सेवाभावी बनें, समाज के लिए अच्छे कार्य करें ऐसी भगवान से प्रार्थना है । निवेदन है कि शिक्षा के महत्व को समझे और अपने बट्ठ’ा| को शिक्षित बनाएँ ।
हमारी समाज में शिक्षा का विस्तार नाम मात्र हुआहै । शिक्षा को संस्कारों की जननी माना जाता है। समाज जैसी शिक्षा की व्यवस्था करता है शिक्षा वैसे ही संस्कार प्रदान करती है किन्तु समाज में जिस तीव्र गति से परिवर्तन हो रहे हैं, उस गति से शिक्षा के स्तर में परिवर्तन नहीं हो रहे हैं, इसी का परिणाम है कि समाज और शिक्षा का तारतम्य कहीं टूट सा गया है। समग्र रूप से देखने पर हमें इसमें अनेक विसंगतियाँ भी दिखाई दे रही है। जिनमें बट्ठ’ा| से मजदुरी करवाना, खेती बाड़ी का काम करवाना, रोड़ बनाने में मजदूरी करवाना, गिट्टी फोड़ना ये सब बातें बंजारा समाज के बट्ठ’ा| को आगे बढ़ने से रोक रही है । समाज के विकास के लिए शिक्षा अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है।
हमारी समाज के विकास की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिक शिक्षा ही कही जा सकती है। महात्मा गाँधी के अनुसार – “शिक्षा का उद्देश्य बालक में निहित शारीरिक, मानसिक व आंतरिक शक्तियों का विकास करना है। शिक्षा ऐसी हो जो बालक को अच्छा नागरिक बनाने के साथ-साथ उसमें एक उत्पादक इकाई के रूप में वातावरण को समझने की योग्यता का विकास कर सके, इसके लिए प्राथमिक शिक्षा से ही गुणवत्ता के मानक निर्धारित कर उनका पालन किया जाना चाहिए। यदि प्राथमिक शिक्षा का स्तर ही गुणवत्ताविहीन हो गया तो कमजोर नींव पर सुन्दर भवन के निर्माण की कल्पना व्यर्थ ही कही जा सकती है।”
वास्तव में यह अवस्था बचपन से ही शुरू हो जाती है आज के माता-पिता अत्यधिक लाड़-प्यार, शिक्षा के उद्देश्यों को न समझ पाना और व्यर्थ की कामकाज से बच्चों को इतना निकम्मा बना देते हैं कि वे मजदूरी करने के सिवाय कुछ नहीं करते। अब परिवर्तित समाज के साथ चलना नहीं दौड़ना पड़ता है इसलिए वर्तमान सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार शैक्षणिक स्तर में सुधार किया जाना आज के समय की अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है।
ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की ।
आप मुझेपहचानतेहोबस इतना ही काफी है ।
अच्छे ने अच्छा और बुरेनेबुरा जाना मुझे।
जिसकी जीतनी जरुरत थी उसन उतना ही पहचाना मुझे ।
एक अजीब सी दौड़ है येज़िंदगी ।
जीत जाओतोकई अपनेपीछे छूट जातेहैं ।
और हार जाओतोअपनेही पीछे छोड़ जातेहैं ।
प्रधान संपादक
बनवारीलाल गराशिया
मो.09826661513