“ऐ सुख तु मिलता कहाँ हैं”
ऐ “सुख” तू कहाँ मिलता है क्या तेरा कोई पक्का पता है क्यों बन बैठा है अन्जाना आखिर क्या है तेरा ठिकाना। कहाँ कहाँ ढूंढा तुझको पर तू न कहीं मिला मुझको ढूंढा ऊँचे मकानों में बड़ी बड़ी दुकानों में स्वादिष्ट पकवानों में चोटी के धनवानों में वो भी तुझको ही ढूंढ रहे थे बल्कि …