Kisan walu Rathod

गोर विचारधारा आपणो गोरबंजारा समाज,एक भुमि छ। वोम जसो बिज पेरिया।वसो वृक्ष बणिये।काटार बिज पेरन आंबा र अपेक्षा किदे तो कती मळिये। आज आचो पेरा तो ।आपण आयेवाळ पिडीन आचो फळ मळिये। ******************************* आपण एक बीजे समान  ज्यारेर बीजा पेरेर वेळा, काई बीज वाटेपर पडगे,पक्षी र नजर पडी, वो आन खालदे। काई बीज खडकाळी…

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एक 18 साल की लडकी 12:30 बजे रात

एक 18 साल की लडकी 12:30 बजे रात को सडक पर अकेली खडी थी उसके सामने से कई गाडिया आ जा रही थी लेकिन वह किसी से लिफ्ट भी नही मांगरही थी… (असल मे उसकी बस छूट गई थी) अचानक उसे एक BULLET पर एक लडका जाता हुआ दिखाई दिया.. तो लडकी ने उस लडके…

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Rajesh Rathod

Plz 2 min time निकाल कर ध्यान से पूरा पढ़ लेना…. और ठीक लगे तो 2-4 को Forward भी कर देना….. कुछ लड़के लड़कियां काॅलेज की केन्टीन मे बैठ कर आजकल TV पर चल रहे “लव जिहाद” पर चर्चा कर रहे थे । एक लड़की ने कहा: “सब बकवास है यार,… प्रेम में धर्म कहां…

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एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत बोले…

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ऊठ भिया ऊठ..

ऊठ भिया ऊठ.. आवगो छ रविवार.. खावा डळी चार तिकीट केन मळीयं कर मत विचार.. आज खावा सळोई अन पिवा क्वार्टर.. ईलेकशन वेगेछं डीकलीअर.. खालं चखना अन मारलं बिअर.. 24 दन खाये-पियेर वेगी छं सोय.. कोई भी जितो कोई हारो.. हाम केरी बापेर करे वाळ छेई गय. ऊठ भिया ऊठ आवगो छं रविवार..

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Praksh Shiwaji Rathod

॥ गोर बंजारा कसळात भिया ॥  नायक , कारभारी,अन डावसाण येन मारो नमस्कार पचपचात राजा भोज सभा सगळ कचेरी नायक पचारु सव्वा लाख तो अन पचारु सव्वा लाख र कारभारी , कचन की काया कपूर की छाती तम हम मलगे तो. शितल वेगी छाती र भीया ॥ दल तमारो अकल केर , मरण  धरण रामेर…

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बंजारा कविता

ना छुरी🔪 रखता हुं ना पिस्तौल रखता हुं बंजारा का बेटा हुं दिल में जिगर रखता हुं इरादों मे तेज़ धार रखता हुं इस लिए हंमेशा अकेला ही निकलता हु ———————-ँ बंगले . गाडी तो ”  बंजारा  ” की घर घर की कहानी हैं……. . . तभी तो दुनिया ” बंजारा ” की दिवानी हैं….

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मारे वावरेंम

मारे वावरे मारो मन भारी रमरोच मारे वावरे चारीवडी हारो हारो रान धुरा बंधाराती दिसावं हरेभरे झाडेरं पानं चारी वात देखनं मारो मन गमरोच मारे वावरेम ….. मारे वावरे दिसावंन जतं-ओत धुडेर वारूळ धुडें सारू जाऊ कत आब म भायारो देवळ सारी तिरथ मन आतच मळरोच मारे वावरेम ….. मारे वावरे कणेती जावं खाळीचा रूंगळी…

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तांडय़ाचा एफआयआर

मी तांडा, पाल, काफीला सारं काही पाहिलं पण कुठच विकास नाही दिसलं. भकास वस्ती, दारिद्रयाची ‘कश्ती’ योजनेला वस्तीची ‘ऍलर्जी’ तरीही तुम्ही ‘ऑल इज वेल’ कसे काय म्हणता…? काळ तंत्रज्ञानाचा आहे म्हणुन… डोकं सुन्न होते तांडा पाहून. उघडय़ावरची मुले… केजलेली फुले.. शिक्षणाची गळती.. वाढते बालकामगार.. सारं काही ओसाड-ओसाड भारतभर फिरले ‘रेणकेजी’ तरीही तुम्ही ‘वेट अँड वॉच’…

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