Padmashri Ramsingh Bhanavat Jayanti 15 August

Ramsing Bhanawat

बंजारा गांधी -पद्मश्री रामसिंहजी भानावत
“वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीड पराई जाने रे”इस भजन के “पीड पराई जाने रे”इसका भावार्थ जो समझा मानो वह महात्मा हो गया। गांव -शहर के गरीब, शोषित वर्गों का जीवन में ऊंचाई लाने की ईमानदार कोशिश करने वाले महात्मा गांधी से अनेक लोग जुड़े। बापू के विचारों से प्रभावित होकर अपना जीवन उनके विचारों को समर्पित करने वाले उनके शिष्यों में से एक रामसिंहजी भानावत थे। राम सिंह फकिरा भानावत का जन्म 15 अगस्त 1906 को वाशिम जिले के फुलउमरी गांव में बंजारा समुदाय के एक किसान परिवार में हुआ। रामसिंह के पिता फकीरा भानावत और माता पिपलीबाई को तीन बच्चे थे, रामसिंह ,रामधन और मानसिंह। फकीरा भानावत गांव की जानी मानी हस्ती थी।जमींदार की कुल खेती करके अपना परिवार का गुजारा करते थे।रामसिंह की माता धार्मिक रूप से मां सरस्वती की उपासक थी। लेकिन वह कर्मों पर विश्वास रखने वाली महिला अपने बच्चों को पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज और संत सेवालाल के पराक्रमों का कारनामों की कहानियां सुनाती थी। रामसिंह का जीवन अपनी माता के संस्कारों से प्रभावित हुआ था। रामसिंह बचपन से ही पराक्रमी पुरुषों के भाँती अच्छे कारनामों को अंजाम देने की सोच रखता था। इसलिए बचपन से ही सत्य वचनों को अपनाकर आचरण करते रहे।
रामसिंह की प्राथमिक शिक्षा फुलउमरी गांव के स्कूल में प्राप्त की, जहाँ वे वसंतराव नाईक के संपर्क में आए।प्राथमिक शिक्षा के बाद वसंतराव नाईक उच्च शिक्षा के लिए अमरावती,नागपुर गए।रामसिंह को अपनी आगे की पढ़ाई गरीबी की विवशता से रोकनी पड़ी। लेकिन उनका निरंतर पढना और चिंतन करना बेरोकटोक जारी रहा। देश में होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी उन्हें अपने गांव के जमींदार के यहां अखबार पढ़ने से मिलती रही। कुमार अवस्था मे ही समाचार पत्रों को पढ़ना, रेडियो से देश की स्थिति का ब्योरा सुनकर उन्हें, महात्मा गांधी के काम के बारे में जानकारी मिलती रही। उस वक्त देश के हित में गांधीजी के आंदोलन का अनुशासन के तत्वों की जानकारी मिलती रही। गांधीजी के कारनामों से प्रभावित होकर रामसिंह ने महात्मा गांधी से मिलने का फैसला किया।


गांधीजी को मिलने के लिए गुजरात के साबरमती आश्रम में गए।गांधीजी के साथ उन्होंने 15 दिन बिताए,वहां उन्होंने सत्य, अहिंसा और संगठनात्मक शक्ति का पाठ सिखा। साथ ही उन्होंने गांधी जी से समाज सेवा के लिए समर्पण की भावना को आत्मसात किया।महात्मा गांधी ने उन्हें भारत भ्रमण करने और भारत सेवक समाज का इस संगठन से जुड़ने की सलाह दी।1926 में इस संगठन से जुड़े और इस संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपना पूरा समय समर्पित किया। उन्होंने देश के गरीब दिन- दलितों की समस्याओं और कष्टों को दूर करने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा दिया। सत्य, सचोटी और इमानदारी से उन्होंने समाज की सेवा की। भारत सेवक समाज का मुख्य उद्देश्य लोगों में व्यक्तिगत स्वार्थ, त्याग की शिक्षा, लोगों में देशभक्ति का निर्माण करना ,धर्म और जातियों के बीच मतभेदों का उन्मूलन करके, सामाजिक समरसता निर्माण करना और समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना, इन सब उद्देश्यों पर भानावतजी ने काम किया है।
स्वतंत्रता पूर्व काल में 10 जुलाई 1930 को भारत का पहला जंगल सत्याग्रह लोकनायक बापूजी अणे के नेतृत्व में पुसद के बेलगव्हाण जंगल में किया गया।यह जंगल सत्याग्रह महात्मा गांधी के अहिंसा तत्व से जुड़ा था।
रामसिंह भानावतजी ने 1933 में जमींदारी उन्मूलन आंदोलन छेड़ा,यह आंदोलन उनके गांव फुलउमरी में हुआ। कुलखेती करने वालों पर हो रहे शोषण के खिलाफ यह आंदोलन असमानता को खत्म करने का मंच साबित हूँआ। इस आंदोलन की परिणीति विदभँ कुल सेवा संघ का गठन करके किसान को जागरूक करने का काम रामसिंहजी भानावत और बाबू सिंहजी राठोड़ ने किया। यह आंदोलन भी गांधीजी के तत्वों से लड़ा गया। उनकीही प्रेरणा से ही इस आंदोलन को सफलता प्राप्त हुई। इसका परिणाम स्वरूप 1952 में वसंतरावजी नाईक ने कुल कायदा यह कानून पारित करके कुल किसानों को मुख्य प्रवाह में लाने की कोशिश सफल हुई।
सन 1942 में “भारत छोड़ो”इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन में भानावतजी ने सक्रिय सहभाग लिया।इस आंदोलन के दौरान उन्हें जेलभी हुई। स्वतंत्रता के बाद उन्हें” स्वतंत्रता सेनानी” किताब दिया गया लेकिन उन्होंने इस का मानदेय अनुदान स्वीकार नहीं किया।
महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित “सर्वोदय सेवा समाज” का संगठन हुआ, इस संगठन की महत्वपूर्ण कार्यो में भानावतजी रहे। उन्होंने वर्गविहीन, जाति विहीन शोषण मुक्त समाज बनाने की सोची। उनका दृढ़ विश्वास था कि व्यक्तिगत जीवन की शुद्धि से ही समाज की उन्नति हो सकती है।यह संगठन महात्मा गांधी के विचारोंसे प्रभावित था।
आजादी के बाद उन्होंने बंजारा संगठन अ.भा. बंजारा सेवा संघ की स्थापना की। इस माध्यम से समाज को विकास पथ पर लाने के लिए अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल किया। महाराष्ट्र सरकार ने उनके इस काम को लेकर उनको 1971 में पहला दलित मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया। इस पुरस्कार की राशि ₹1001 की रकम बांग्लादेश रिलीफ फंड को जमा किए।उनकी यह सोचभी गांधी विचारोंसे मेल खाती है।
बंजारा लोग व्यापारी खानाबदोश थे,उनका कारवां लमान मार्ग से गुजरता यूरोप खंड की सभी देशों में उनका व्यापार चलता था। इस कड़ी का संशोधन करके भानावतजी ने यूरोप खंड के रोमा जिप्सी का अध्ययन किया।1978 में विश्व रोमा संम्मेलन में जाकर 10 देशों का दौरा किया। 1981 में पश्चिम जर्मनी का दौरा किया और 11 देश घूम कर विश्व रोमा संम्मेलन को विश्वास दिलाया कि, यह रोमा जिप्सी भारत देश के मूल निवासी है। उनके इस अध्ययन को विश्व रोमा सम्मेलन में मान्यता भी दी है।
महाराष्ट्र के इस समाजसेवी, सामाजिक शोधकर्ता का भारत सरकार ने उनके उत्कृष्ट सामाजिक सेवा के कार्यों की दखल लेकर उन्हें 26 जनवरी 1992 को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पद्मश्री रामसिंहजी भानावत एक व्रतधारी ,खादी पुरस्कृत समाज सुधारक थे। जिन्होंने अपने जीवन में कभी सत्ता, संपत्ति और प्रसिद्धि को छुआ तक नहीं। गांधीजी के सत्य, अहिंसा परमोधर्म के पथ पर चलकर गरीब और पिछड़े वर्गों की पीड़ा को कम करने में उनका जीवन समर्पित था। उनकी 75 वर्ष की समाज सेवा का अमृत महोत्सव मनाने के बाद 10 जून 2002 को उनका देहांत हुआ।
उनकी 114 वी जन्मतिथि के अवसर पर हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं…….
लेखक
सुरेश राठोड,रुडावत
पुसद,जि.यवतमाळ
मो.नं.8805107804

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