Kailash D. Rathod
“और कब तक जिना है गुलामी के साथ” अंग्रेजो की गुलामी टूट सकती है, मुसलमान की गुलामी टूट सकती है, हिंदु की गुलामी टूट सकती है; गुलामी नयी शक्लों में फिर से खड़ी हो जाती है. पुरानी की पुरानी गुलामी फिर सिंहासन पर बैठ जाती है. हां, इतना फर्क पडता है कि पुरानी गुलामी से…